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दल-बदल की लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए हानिकारक |
- विनोद कुमार मिक्ष,अधिवक्ता,भोपाल
भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देष में, राजनीतिक स्थिरता और शुचिता बनाए रखना एक सतत चुनौती रही है। इस चुनौती से निपटने के लिए समय-समय पर विभिन्न कानूनी उपाय किए गए हैं। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण उपाय है दल-बदल विरोधी कानून, जिसे 1985 में संविधान की दसवीं अनुसूची के रूप में जोड़ा गया था। इस कानून का मुख्य उद्देश्य राजनीतिक दलों में टूट और विधायकों के पाला बदलने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना था, जिससे सरकारों की स्थिरता सुनिश्चित हो सके। कई दशकों से अधिक समय बीत जाने के बाद, यह बहस अब भी जारी है कि क्या दल बदल कानून ने वास्तव में भारतीय राजनीति को अधिक स्थिर और नैतिक बनाया है, या इसके कुछ ऐसे नकारात्मक प्रभाव भी सामने आए हैं जो देश की राजनीतिक प्रक्रिया और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं। दल-बदल देश की राजनीति को कमजोर कर रहे हैं। दल बदल कानून का एक प्रमुख नकारात्मक पहलू यह है कि यह कई बार लोकतांत्रिक जनादेश का उल्लंघन करता हुआ प्रतीत होता है। दल बदल कानून का एक और महत्वपूर्ण नुकसान यह है कि यह जनप्रतिनिधियों की स्वतंत्रता और उनके विधायी विवेक को सीमित करता है। इस कानून के तहत, यदि कोई विधायक अपनी पार्टी के निर्देशों के विपरीत सदन में वोट करता है या पार्टी की सदस्यता त्याग देता है, तो उसे अपनी सदस्यता से अयोग्य ठहराया जाता है। इस प्रावधान के कारण, विधायकों को अक्सर अपनी पार्टी के नेतृत्व के निर्देशों का आँख मूंदकर पालन करना पड़ता है, भले ही वे किसी विशेष मुद्दे पर अलग राय रखते हों या उन्हें लगे कि पार्टी का रुख उनके क्षेत्र के मतदाताओं के हितों के विरुद्ध है। जब कोई विधायक किसी विशेष राजनीतिक दल के टिकट पर चुनाव जीतता है, तो वह उस दल की विचारधारा, नीतियों और चुनावी वादों के प्रति मतदाताओं का विश्वास जीतकर सदन में पहुँचता है। उसके बाद व्यक्तिगत लाभ या अन्य कारणों से अपनी पार्टी बदल लेता है, तो यह उस मतदाता के विश्वास के साथ धोखा हो जाता है जिसने उसे उस विशेष दल के प्रतिनिधि के रूप में चुना था। मतदाता किसी उम्मीदवार को सिर्फ एक व्यक्ति के तौर पर नहीं, बल्कि उस राजनीतिक दल के सदस्य के रूप में भी वोट देते हैं जिसकी वह सदस्यता रखता है। दल-बदल की स्थिति में, विधायक न केवल अपनी पार्टी से विश्वासघात करता है। यह स्थिति लोकतांत्रिक प्रक्रिया की नींव को कमजोर कर रही है और मतदाताओं के मन में राजनीतिक व्यवस्था के प्रति अविश्वास पैदा कर दिया है। यह स्थिति जनप्रतिनिधियों को कठपुतली की तरह बना देती है, जो अपनी व्यक्तिगत सोच और अपने मतदाताओं की जरूरतों के अनुसार निर्णय लेने में सक्षम नहीं होते। संसदीय लोकतंत्र में, यह उम्मीद की जाती है कि जनप्रतिनिधि अपने मतदाताओं के हितों का प्रतिनिधित्व करेंगे और सदनों में स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करेंगे। दल बदल कानून इस मूलभूत सिद्धांत के विपरीत काम करता है और विधायकों को पार्टी के आलाकमान के दबाव में बंधे रहने के लिए मजबूर करता है। जब विधायकों को पार्टी लाइन से हटकर वोट करने की अनुमति नहीं होती है, तो सदन में होने वाली बहस और चर्चा की गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। महत्वपूर्ण मुद्दों पर रचनात्मक और आलोचनात्मक चर्चा के बदले अक्सर यह देखा जाता है कि विधायक केवल अपनी पार्टी के रुख का समर्थन करते हैं, भले ही उन्हें उस नीति या कानून में कमियां नजर आती हों। एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न दृष्टिकोणों को सुना जाए और उन पर गंभीरता से विचार किया जाए। दलबदल कानून के कारण, असहमति की आवाजें दब जाती हैं और विधायक अपनी पार्टी के डर से खुलकर अपनी राय व्यक्त करने से कतराते हैं। इससे कानूनों और नीतियों पर पर्याप्त विचार विमर्श नहीं हो पाता है, जिसके परिणामस्वरूप कई बार त्रुटिपूर्ण या जनविरोधी निर्णय लिए जाते हैं। उक्त कानून को राजनीतिक अस्थिरता को रोकने के उद्देश्य से लाया गया था, लेकिन यह पूरी तरह से इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल नहीं रहा है। ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जब राजनीतिक दलों ने इस कानून की कमियों का फायदा उठाकर या अन्य तरीकों से सरकारों को अस्थिर करने का प्रयास किया है। कई बार यह देखा गया है कि पार्टियां विधायकों को प्रलोभन देकर या डरा धमकाकर इस्तीफा देने के लिए मजबूर करती हैं, जिससे सरकार अल्पमत में आ जाती है। इसके अलावा, कानून में विलय से संबंधित प्रावधान का भी दुरुपयोग किया गया है, जहां बड़ी संख्या में विधायकों को एक साथ दल बदलने के लिए प्रेरित किया जाता है ताकि अयोग्यता से बचा जा सके। दल बदल कानून राजनीतिक अस्थिरता का कोई स्थायी समाधान साबित नहीं हुआ है। इसने विधायकों के खुले तौर पर पाला बदलने की प्रक्रिया को जटिल जरूर बना दिया है, लेकिन राजनीतिक जोड़ तोड़ और सरकार गिराने के अन्य तरीके अभी भी मौजूद हैं। उक्त कानून का एक अप्रत्याशित नकारात्मक प्रभाव यह हुआ है कि इसने अवसरवादी राजनीति को और बढ़ावा दिया है। अब विधायक व्यक्तिगत लाभ या मंत्री पद की लालसा में खुले तौर पर पाला बदलने के बजाय, पर्दे के पीछे से सौदेबाजी करते हैं और अपनी पार्टी पर दबाव बनाते हैं ताकि उन्हें मनचाहा पद या लाभ मिल सके। पार्टी नेतृत्व भी कई बार अपनी सरकार को बचाने या अन्य राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ऐसे विधायकों की मांगों को मानने के लिए मजबूर हो जाता है। यह स्थिति राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है और सत्ता को व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने का एक साधन बना देती है। जब विधायकों को पार्टी लाइन से अलग राय व्यक्त करने या वोट करने की अनुमति नहीं होती है, तो पार्टी के भीतर स्वस्थ बहस और असहमति की संस्कृति …