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व्यक्तिगत अनियमित्ता के चलते एट्रोसीटी एक्ट मे फंसाने के फेक सबूत गढ़े जा रहे ..
- डॉ. देवेन्द्र प्रताप सिंह
भारत गणराज्य के अलावा किसी भी देष का संविधान अपने नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और गरिमा का अधिकार प्रदान करता है। भारत के संविधान मे भी इन अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून बनाए गए हैं, जिनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 प्रमुख है। यह अधिनियम अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोकने और दंडित करने के लिए बनाया गया था। इसका उद्देश्य इन समुदायो के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और नागरिक अधिकारों की रक्षा करना है। मध्य प्रदेश में, और देश के अन्य हिस्सों में भी, ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहाँ षासकीय सेवक पर इस महत्वपूर्ण कानून का दुरुपयोग करने का आरोप लगा है। जब लोक सेवक, जो कानून के संरक्षक माने जाते हैं, अपने पद का दुरुपयोग करके किसी व्यक्ति या समूह को झूठे अत्याचार के मामलों में फंसाते हैं, तो यह न केवल कानून के मूल उद्देश्य को विफल करता है, बल्कि न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है। इनमें शारीरिक हमला, यौन उत्पीड़न, अपमानित करना जैसे कृत्य शामिल हैं। षासकीय अधिकारियों को इस अधिनियम के तहत महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई है। वे इन अपराधों की जांच करने, पीड़ितों को सुरक्षा और राहत प्रदान करने और अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने के लिए जिम्मेदार हैं। जब यही षासकीय सेवक अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हैं, तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। षासकीय सेवको द्वारा अत्याचार निवारण अधिनियम का दुरुपयोग कुछ मामलों में, षासकीय सेवक व्यक्तिगत दुश्मनी, राजनीतिक लाभ या अन्य निहित स्वार्थों के चलते अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों को झूठे अत्याचार के मामलों में फंसा सकते हैं। वे झूठे सबूत गढ़े जा रहे है।
षासकीय सेवक डयूटी के दौरान अपने पद का इस्तेमाल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को डराने, धमकाने या परेशान करने के लिए कर सकते हैं, भले ही कोई औपचारिक मामला दर्ज न किया गया हो। कुछ मामलों में, सत्तारूढ़ दल के अधिकारी या उनके समर्थक इस अधिनियम का उपयोग अपने राजनीतिक विरोधियों से संबंधित लोगों को निशाना बनाने के लिए कर सकते हैं। झूठे मामलों में फंसाकर उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल किया जा सकता है और उन्हें राजनीतिक रूप से कमजोर किया जा सकता है।
राजनीतिक आकाओं या शक्तिशाली व्यक्तियों के दबाव में, अधिकारी किसी विशेष व्यक्ति या समूह को निशाना बनाने के लिए कानून का दुरुपयोग कर सकते हैं। वित्तीय लाभ या अन्य अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए, कुछ अधिकारी कानून का दुरुपयोग कर सकते हैं।
कुछ मामलों में, अधिकारी कानून की गलत व्याख्या कर सकते हैं या अनजाने में ऐसे कार्य कर सकते हैं जो दुरुपयोग की श्रेणी में आते हैं। जब षासकीय सेवक अत्याचार निवारण अधिनियम का दुरुपयोग करते हैं, तो इसके पीड़ितों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकते हैं । झूठे आरोपों का सामना करना, कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना और अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न का अनुभव करना पीड़ितों के लिए गंभीर मानसिक और भावनात्मक आघाात का कारण बन सकता है। झूठे मामलो मे फसाए जाने से पीड़ितों और उनके परिवारों को सामाजिक बहिष्कार और बदनामी का सामना करना पड़ सकता है। उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती है और उन्हें समुदाय मे अलग-थलग महसूस हो सकता है। कानूनी लड़ाई लड़ने, अदालतों में पेश होने और वकीलों की फीस भरने में पीड़ितों को भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। यदि उन्हें गिरफ्तार किया जाता है या हिरासत में रखा जाता है, तो वे अपनी नौकरी भी खो सकते हैं। जब अधिकारी जानबूझकर जांच में देरी करते हैं या निष्पक्ष जांच नहीं करते हैं, तो पीड़ितों को न्याय मिलने में लंबा समय लग सकता है या उन्हें न्याय से वंचित भी किया जा सकता है। जब कानून के रक्षक ही कानून का दुरुपयोग करते हैं, तो पीड़ितों का न्याय प्रणाली और सरकार पर से विश्वास उठ जाता है। षासकीय अधिकारियों को अत्याचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों और इसके दुरुपयोग के संभावित परिणामों के बारे में नियमित प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम प्रदान किए जाने चाहिए। उन्हें मानवाधिकारों और निष्पक्ष व्यवहार के महत्व ….