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सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 का लगाम है डीपीडीपी एक्ट,2023

- डॉ. देवेन्द्र प्रताप सिंह

भारत में डिजिटल युग के साथ-साथ व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा को लेकर चिंता भी तेजी से बढ़ी है। जिसको देखते हुए वर्ष भारत सरकार ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट सक्षिप्त मे डीपीडीपी एक्ट,2023 पारित किया। यह कानून नागरिकों की निजी जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है, लेकिन इसका प्रभाव केवल डेटा कंपनियों तक सीमित नहीं रहेगा। यह  सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के साथ ही पत्रकारिता पर भी  प्रतिबंध अघोषित लगायेगा। उक्त अधिनियम का उद्देश्य है कि कोई भी संस्था या व्यक्ति किसी नागरिक का व्यक्तिगत डेटा उसकी स्पष्ट सहमति के बिना एकत्र, संग्रहित या उपयोग न करे। जबकि कोई भी एप्प डाउनलोड करें तो सभी कार्य के लिए अनुमति देना होता है। सवाल यह है कि मकान नम्बर, पता, मोबाइल नंबर, शोशल मिडिया एडमिन और समूह तथा जिस दस्तावेज पर नौकरी तथा वेतन दिया जाता है वह इसमें क्यों बचाया जा रहा है…? लेकिन शासकीय अभिलेख और सूचना जिस पर शासकीय धन खर्च होता है और शासकीय नियम और कानून का पालन सेवकों के लिए आवश्यक है को भी गोपनीयता का सहारा लिया जायेगा। जब पत्रकार आरटीआई कार्यकर्ता एवं विहसल ब्लोअर कोई  अभिलेख मांगता है और प्रकाशित या सार्वजनिक करता है, तो वह आमतौर पर कई लोगों की निजी जानकारियों तक पहुँचता है। यदि हर बार सहमति लेनी पड़े, तो भ्रष्टाचार, घोटाले या सत्ता के दुरुपयोग जैसी रिपोर्टों को सामने लाना मुश्किल हो जाएगा।

 

       आरटीआई कार्यकर्ताओ को चुनौती डीपीडीपी एक्ट,2023के तहत षसकीय पक्रिया का मुख्या भग औश्र अनिवार्य अळिोलखो को भी जैसे कि जैसे मोबाइल नंबर, ईमेल, पता, वित्तीय जानकारी आदि को व्यग्तिगत डाटा के नाम पर लोगो के अनुमति बिना सार्वजनिक करना दंडनीय करने को सीधा सा अर्थ है कि सुचना के अध्किार पर अतिक्रमण कर रोक दस्तावेजो की पहुच तक रोक लगाना।फिर कोई भी अभिलेख नहीं मिलेगा क्योंकि सभी में पत्राचार का माध्यम मोबाइल नंबर, ईमेल प्रयुक्त होता है।  अब सोचिए यदि कोई आरटीआई कार्यकर्ता किसी सम्भावित घोटाले का अभिलेख मांगता है, जिसमें किसी अधिकारी या कॉर्पोरेट संस्थान की गोपनीय जानकारी उजागर करनी हो, तो यह कानूनी अभिलेख देने से मना कर देगा। साथ ही इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिज्म की स्वतंत्रता बाधित हो जायेगा। पत्रकारिता का एक मूल सिद्धांत है कि वह अपने सूत्रों की पहचान गोपनीय रखता है। लेकिन यदि किसी मामले में डेटा उपयोग को लेकर पत्रकारों से रिपोर्ट मांगी जाती है, तो उनके सूत्रों की पहचान सामने आ सकती है। इससे पत्रकारों …

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