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11वें अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम में सम्मिलित हुए योगी आदित्यनाथ और प्रदेशवासियों को दी शुभकामनाएं |

- डॉ. देवेन्द्र प्रताप सिंह
योग भारत की ऋषि परम्परा का ऐसा मंत्र, जो स्वस्थ काया के साथ-साथ स्वस्थ मस्तिष्क भी उपलब्ध कराता  है। योग की परम्परा को आगे बढ़ाने का श्रेय प्रधानमंत्री जी को जाता, जिनके प्रयास से संयुक्त राष्ट्र संघ ने योग की विरासत को वैश्विक मान्यता देकर 21 जून की तिथि को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। 
 
‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्‘ भाव की पूर्ति योग के माध्यम से होती
 
भारत ने योग को आत्मकल्याण के माध्यम से लोक कल्याण का माध्यम बनाकर विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। चेतना के उच्च आयामों के माध्यम से भारतीय मनीषा ने दुनिया को अनेक रहस्यमयी स्थितियों से अवगत कराने का कार्य किया। योगी आदित्यनाथ जी अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि योग भारत की ऋषि परम्परा का ऐसा मंत्र है, जो स्वस्थ काया के साथ-साथ स्वस्थ मस्तिष्क भी उपलब्ध कराता है। भारतीय मनीषा ने प्राचीन काल से ही योग के महत्व से हम सभी को विस्तृत रूप से अवगत कराया है। मनीषा का मानना रहा है कि ‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्‘ अर्थात् धर्म के सभी साधनों, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति एक स्वस्थ्य शरीर से ही  सम्भव है। ‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्‘ भाव की पूर्ति योग के माध्यम से होती है। 
मुख्यमंत्री जी आज जनपद गोरखपुर में श्री गोरखनाथ मन्दिर के महन्त दिग्विजयनाथ स्मृति सभागार में 11वें अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। इस अवसर पर वह योगाभ्यास में भी सम्मिलित हुए। उन्होंने कहा कि आज अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के कार्यक्रम से देश व दुनिया के लोग जुड़ रहे है। विशाखापट्टनम्, आन्ध्र प्रदेश में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी योग कार्यक्रम में सम्मिलित होकर पूरी दुनिया को भारत की योग परम्परा के महत्व से अवगत करा रहे हैं। धर्म, आध्यात्मिक उन्नयन, सर्वांगीण विकास, सांसारिक उत्कर्ष आदि से जुड़े कार्य स्वस्थ शरीर के बिना नहीं हो सकते। यदि आप स्वस्थ शरीर के माध्यम से अर्थ के उपार्जन के साथ जुड़ते है, तो वह लोक कल्याण का माध्यम बनता है। आपको अनेक प्रकार से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। स्वस्थ शरीर द्वारा ही कामनाओं की पूर्ति होती है। स्वस्थ शरीर के माध्यम से व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नयन के उच्च सोपानों को प्राप्त कर सकता है। जिसके माध्यम से हमारी ऋषि परम्परा ने सबके सामने एक विस्तृत भण्डार प्रस्तुत किया है। मुख्यमंत्री जी ने कहा कि योग भारत की ऋषि परम्परा का प्रसाद है। भारत ने योग को आत्मकल्याण के माध्यम से लोक कल्याण का माध्यम बनाकर विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। इसकी लम्बी परम्परा तथा अलग-अलग आयाम देखने को मिलते हैं। दुनिया में भारत की तुलना केवल आर्थिक उन्नयन के लिए नहीं होती, बल्कि आर्थिक उन्नयन केवल एक पक्ष है। चेतना के उच्च आयामों के माध्यम से भारतीय मनीषा ने दुनिया को अनेक रहस्यमयी स्थितियों से अवगत कराने का कार्य किया था। चेतना के उच्च आयामों के माध्यम से व्यक्तित्व का विकास सम्भव हुआ। ब्रह्माण्ड के जो रहस्य विश्व मानवता के लिए दुर्लभ हैं, भारतीय ऋषि परम्परा ने उन्हें उद्घाटित करते हुए भारत के धर्म ग्रन्थों में समाहित कर एक विरासत के रूप में वेदों, उपनिषदों, पुराणां, स्मृतियों तथा शास्त्रों के रूप में हम सबके सामने प्रस्तुत किया है। 
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भारतीय मनीषा की विरासत तथा भारतीय ऋषि परम्परा के योग सम्बन्धी ज्ञान से दुनिया के अनेक देश लाभान्वित होते थे, लेकिन इन यौगिक क्रियाओं को अपने नाम से पेटेंट कराने तथा अपने ग्रन्थों में संकलित करने का कार्य करते थे। परिणामस्वरूप भारत अपनी विरासत से वंचित हो जाता था। योग की इस परम्परा को आगे बढ़ाने का श्रेय प्रधानमंत्री जी को जाता है। हर भारतवासी प्रधानमंत्री जी का आभारी है, जिनके प्रयास से संयुक्त राष्ट्र संघ ने योग के इस विरासत को वैश्विक मान्यता देकर 21 जून की तिथि को अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। केवल भारतीय ही नहीं, बल्कि दुनिया के लगभग 190 देश 21 जून, 2015 से लगातार भारत की योग की विरासत के साथ जुड़कर अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस ऋषि परम्परा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का अवसर तथा आने वाली पीढ़ियों को अपनी विरासत से जोड़ने का प्रयास है। यह एक स्वस्थ शरीर के माध्यम से एक स्वस्थ मस्तिष्क की अवधारणा को साकार करने का भी प्रयास है। भारतीय मनीषा कहती है कि जिस व्यक्ति के पास योगाग्नि से तपा हुआ शरीर है, उस व्यक्ति से जरा (बुढ़ापा) तथा मृत्यु आदि व्याधियां हमेशा दूर रहती हैं। यह सब नियमित एवं संयमित दिनचर्या के माध्यम से सम्भव है।
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