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- उच्च शिक्षा विभाग के लिए मजाक का विषय बना प्रदेश का युवा वर्ग: घर बैठे हो रहा है विद्यार्थियों का सतत् मूल्यांकन
- व्यावसायिक एवं इलेक्टिव विषय की ज्ञान और परीक्षा छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ है
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उच्च शिक्षा विभाग के लिए मजाक का विषय बना प्रदेश का युवा वर्ग: घर बैठे हो रहा है विद्यार्थियों का सतत् मूल्यांकन |
- डॉ. संदीप सबलोक षिक्षाविद, सागर
प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग में बैठे निकम्मे रणनीतिकार नई शिक्षा नीति 2020 के नाम पर पिछले 4 साल से प्रदेश के युवाओं के साथ कोरा मजाक कर रहे हैं। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा प्राइवेट और नियमित परीक्षार्थियों के लिए समान रूप से समग्र सतत मूल्यांकन, फील्ड प्रोजेक्ट या इंटर्नशिप तथा कोई एक व्यावसायिक पाठ्यक्रम की अनिवार्यता रखी गई है। यहां पहला सवाल यह उठता है कि जब प्राइवेट परीक्षार्थी महाविद्यालय से सीधे तौर पर संबंधित ही नहीं रहता है तो उनका समग्रता से सतत यानी कि नियमित मूल्यांकन करने के लिए क्या महाविद्यालयों के प्रोफेसर घर-घर जाएंगे ? इतना ही नहीं रेगुलर परीक्षार्थियों के समान ग्रेजुएशन की सभी कक्षाओं में इन्हें फील्ड प्रोजेक्ट और इंटर्नशिप जैसी प्रक्रियाओं से भी गुजरना पड़ता है! इसमें भी सवाल उठता है कि जब महाविद्यालय से इनका कोई नियमित संपर्क ही नहीं रहता है तो ऐसे परीक्षार्थी अपना प्रोजेक्ट वर्क पूरा करने के लिए किस से मार्गदर्शन लेंगे ???
शिक्षकों की कमी से जूझ रहे सरकारी महाविद्यालयों में ब्ब्म् परीक्षाएं तथा च्ी.क् के पेटर्न पर प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाने की प्रक्रिया गाइडेंस के अभाव में औपचारिकता बन कर रह गई है। जाहिर है कि ऐसी स्थिति में औपचारिक खानापूर्ति कर उन्हें अंक दिए जा रहे हैं!
नई शिक्षा नीति 2020 के नाम पर शुरू किए गए तकनीकी व रोजगार मूलक विषयों योग, जैविक खेती, व्यक्तित्व विकास, एनसीसी, एनएसएस, जैसे 188 विषयों में से अधिकांश विषयों को पढ़ाने के लिए शिक्षक ही नहीं हैं। जिस कारण इन विषयों में एडमिशन लेने वाले विद्यार्थी विषय का ज्ञान नहीं मिलने के कारण उनमें विषयों में फैल होकर अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ते हुए उच्च शिक्षा से ही पलायन कर रहे हैं। ग्रेजुएशन कोर्स पूरा करने की 4 साल की अवधि तक पहुंचते पहुंचते रेगुलर एडमिशन लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या एक तिहाई से भी नीचे आकर बेहद नगण्य और शर्मनाक स्थिति में पहुंच गई है। इस प्रक्रिया से प्रदेश में ऐसे डिग्रीधारी युवाओं की फौज तैयार हो रही है जिन्हें अपने विषयों का व्यवहारिक ज्ञान ही नहीं है। ऐसे में लगता है कि शासन की ही है मंशा है कि प्रदेश का युवा उच्च शिक्षा से पलायन कर पूरी तरह शिक्षित न हो सके और सरकार से कभी रोजगार मांग ना पाए।