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बिन गुरू व्यावसायिक एवं इलेक्टिव विषय का पढाई, परीक्षा छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ |

- डॉ. देवेन्द्र प्रताप सिंह

राष्ट्रीय शिक्षा नीति,2020 भारत की शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने के उद्देश्य से की गयी लेकिन 4 साल ही मे उसके खामिख सबके सामने आने लगी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति,2020 में स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा और शिक्षक शिक्षा सहित शिक्षा के सभी स्तरों पर व्यापक बदलाव किया  जा रहा है। उच्च शिक्षा मे बदलावों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और विश्वविद्यालयो के बीच समन्वय और सहयोग वगैर अंजाम देने से पाठयक्रम निधारण मे इनियमित्ता देखने को मिल रहा है। सबसे बड़ी चुनौती ओएसडी और विभागीय अधिकारियो का षिक्षाविदो से समन्वय स्थापित नही कर पाना रहा है। केवल आनलाइन मिटिंग के नाम पर किसी भी विषय उनके चहेते जो भी हो से अन्य किसी भी विषय का पाठयक्रम बनवाना तक षामिल है। वायवा जैस कार्य बाहय परिक्षको के लिये बनाये गये परिनियम के बदले स्वाय के आदेष से कराने से गुणवत्ता के नाम पर खानापूति किया जा रहा है। अन्य अन्य कारण जो है वह है सीसीई अंक जोडकर उर्तीण करना। छात्र-छात्राओं को विषयों को चुनने की अधिक स्वतंत्रता दी गयी है जो एक सकारात्मक कदम है लेकिन यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि सभी विषयों के लिए चाहे वह इलेक्टिव हो या व्यावसायिक सभी मे योग्य शिक्षक उपलब्ध हाने चाहियेक जिसका अभाव दिखाई दे रहा है।

 

        राष्ट्रीय शिक्षा नीति,2020 में प्रस्तावित बदलावों को लागू करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की व्यवस्था नही है। छात्र-षिक्षक अनुपात और वेतन पर किया जा रहे खर्च से सत्यता सबके सामने आ सकता है। स्कलू शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिषत खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन इस लक्ष्य का कितना हिस्सा वेतन पर खर्च किया जायेगा एक महत्वपूर्ण चुनौती है। विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए धन का आवंटन और वितरण, खासकर दूरदराज और वंचित क्षेत्रों में, एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है। देश के कई स्कूलों और उच्च शिक्षण संस्थानों में अभी भी पर्याप्त बुनियादी ढांचे की कमी है, जैसे कि पर्याप्त कक्षाएँ, प्रयोगशालाएँ, पुस्तकालय और तकनीकी संसाधन। नयी शिक्षा नीति में शिक्षकों की भूमिका को महत्वपूर्ण माना गया है और उनके व्यावसायिक विकास पर जोर दिया गया है। नीति के सफल कार्यान्वयन के लिए बड़ी संख्या में शिक्षकों को नए पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों और तकनीकों में प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है जबकि छात्र-षिक्षका का अनुपात मे बहुत अंतर है। कुठ विायो को उच्चषिक्षा मे वगैर षिक्ष्का ही पढाया जा रहा है जिससे सवाल तो लगना लाजिमी है। राज्यों के अपने विष्वविद्यालय और नीतियां हैं, और उनमें एकरूपता लाना कठिन हो है। नई नीति में मातृभाषा में शिक्षा पर जोर दिया गया है। यह एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इसे लागू करने में कई चुनौतियां हैं। विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न मातृभाषाएं बोली जाती हैं और सभी भाषाओं के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षण सामग्री और प्रशिक्षित शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक कठिन कार्य होगा। विशेष रूप से उन छात्रों के लिए समस्या हो सकती है जो एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित होते हैं जहाँ अलग-अलग स्थानीय भाषाएँ बोली जाती हैं।नयी शिक्षा नीति उच्च शिक्षा संस्थानों को अधिक स्वायत्तता देने और विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए भारत में परिसर स्थापित करने की अनुमति देने की बात करती है। मध्य प्रदेष सहित अन्य राज्यो मे उच्च षिक्षा का निजीकरण तेजी से किया जा रहा है। जिससे जिससे शिक्षा महंगी हो गयी है। शुल्क निर्धारण और गुणवत्ता नियंत्रण के संबंध में पर्याप्त नियामक तंत्र की अनुपस्थिति में निजी संस्थान मनमानी कर सकते हैं।नीति में वंचित समूहों और क्षेत्रों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, लेकिन इन प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करना और यह सुनिश्चित करना कि शिक्षा की गुणवत्ता सभी के लिए समान हो, एक बड़ी चुनौती होगी। गरीब और वंचित वर्गों के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा तक पहुंच सीमित हो रही है। सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के बजाय छात्रवृत्ति और अन्य सहायता प्रदान करने से षिक्षा के नाम पर केवल डिगी ही दिया जा सकता है।

       शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर निर्णय लेने में राज्य सरकारों के अधिकारों को नजर अंदाज करने का भी आरोप लगाया गया है, जबकि शिक्षा भारतीय संविधान की समवर्ती सूची का विषय है। कुछ लोगों का मानना है कि नीति प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों पर अत्यधिक जोर देती है जबकि आधुनिक और समकालीन विचारों को पर्याप्त महत्व नहीं देती है। कुशल शिक्षकों की कमी एक बड़ी समस्या है। नयी शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षा के लिए किए गए प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए कमीयो को दूर करना आवश्यक है। इस नीति के सफल कार्यान्वयन में कई महत्वपूर्ण चुनौतियां और संभावित कमियां हैं जिन पर ध्यान देना आवश्यक है। शिक्षाविदों, शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों सहित सभी हितधारकों के सक्रिय सहयोग और प्रयासों से ही इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना किया जा सकता है और नीति के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है। मूल्यांकन के नए तरीकों के नाम पर केवल कागजी खाना पूर्ति के कारण भी बड़ी समस्या आ गयी है।

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