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- उच्च शिक्षा विभाग के लिए मजाक का विषय बना प्रदेश का युवा वर्ग: घर बैठे हो रहा है विद्यार्थियों का सतत् मूल्यांकन
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- योगी आदित्यनाथ बनाम अखिलेश यादव
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- यशवंत वर्मा के घर में जले या जले हुए नोटों के संबंध में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति।
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प्रयोगषाला एवं वास्तविक विहीन प्रायोगिक परीक्षा
- डॉ. देवेन्द्र प्रताप सिंह
रसायन षास्त्र पदार्थो के गुणों, संरचना, परिवर्तनों और रहस्यों को समझने का अध्ययन करना विज्ञान का महत्वपूर्ण और अनिवार्य पक्ष है। रसायन षास्त्र की जटिलताओं को जानने के लिए सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ प्रायोगिक ज्ञान एवं कौशल का होना भी अत्यंत आवश्यक है। रसायन षास्त्र प्रयोगशाला, रसायन षास्त्र के छात्र-छात्राओं के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है जहाँ वे सिद्धांतों को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करते है। विभिन्न रासायनिक अभिक्रियाओं को अपनी आँखों से देखते हैं और वैज्ञानिक विधि के अनुसार प्रयोगों को सफलतापूर्वक संपन्न करने की विधियों को जानते एवं सीखते है। एक सुसज्जित प्रयोगशाला न केवल छात्र-छात्राओं को व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करती है, बल्कि अवलोकन, विश्लेषण, निष्कर्ष निकालने के साथ ही एक सामूहिक कार्य करने की भावना भी विकसित करती है। रसायन षास्त्र की प्रयोगशाला विभिन्न प्रकार के अस्थायी एवं स्थायी उपकरणों से भरी होती है, जैसे कि बीकर, फ्लास्क, पिपेट, ब्यूरेट, फिल्टर पेपर, बर्नर, बैलेंस, स्पेक्ट्रोफोटोमीटर आदि। इन उपकरणों को प्रत्यक्ष रूप से देखना, उन्हें पकड़ना और उनका सही उपयोग करना एक महत्वपूर्ण कौशल है जो केवल प्रयोगशाला में ही सीखा जा सकता है। रसायन षास्त्र मूल रूप से रासायनिक अभिक्रियाओं का अध्ययन है। प्रयोगशाला में छात्र विभिन्न रसायनों को मिलाते है। उन्हें गर्म करते हैं या अन्य कंडीषन मे होने वाले परिवर्तनों को अपनी आँखों से देखते और समझते है। रंग में परिवर्तन, गैस का निकलना, अवक्षेप का बनना या ऊष्मा का उत्सर्जन जैसी घटनाओं का प्रत्यक्ष अनुभव छात्रों के मन में रासायनिक प्रक्रियाओं की गहरी समझ विकसित करता है।
प्रायोगिक परीक्षा का मूल उद्देश्य छात्र-छात्राओं की उन व्यावहारिक क्षमताओं का आकलन करना होता है। मध्य प्रदेष के महाविद्यालयो, विष्वविद्यालयो और स्कूलो के प्रयोगशाला में विभिन्न उपकरणों और रसायनों के साथ कार्य करते हुए कौषल प्राप्त करते है। ज्यादातर महाविद्यालयों में प्रायोगिक कार्य आयोजित कराये बिना ही परीक्षा कराया जा रहा है इससे रसायन षास्त्र अछूता नही है,जो न केवल र्दुभाग्यपूर्ण है बल्कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता और छात्रों के भविष्य के लिए भी गंभीर खतरा बना गया है। क्योकि स्नातकोत्तरधारी को बीकर का संज्ञान नही और ना ही दर्षन हुये है। फिर वह स्कूल षिक्षा विभाग मे पात्रता परीक्षा उर्तीण कर नौकरी पाने के बाद क्या षिक्षा देगा ? इसका परीक्षण स्कूलो और कालेजो मे जाकर किया जा सकता है। ऐसी प्रायोगिक परीक्षा, जिसमें छात्र वास्तविक उपकरणों को छू नहीं सकते, रासायनिक पदार्थों के साथ कोई क्रिया नहीं कर सकते और न ही किसी अभिक्रिया को घटित होते हुए देख सकते हैं, वह मात्र एक कल्पना के अनुभवी बनकर रह गये है। प्रश्न तो यही उठता है कि ऐसी प्रयोगिक परीक्षा मे छात्रों को केवल सैद्धांतिक प्रश्नों के आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा ? जिसमें वे किसी काल्पनिक प्रयोग की विधि, अवलोकन और निष्कर्षों का वर्णन करेंगे? बिना प्रयोगषाला के किये जा रहे प्रायोगिक परीक्षा वास्तविक ….